Wednesday 2 July 2014

दरख्त




मुझमें रोपा गया सूनापन
दरख्त हो गया है
शजर के पत्ते सारे
वक्त ने जला डाले
कोई सावन न सींच पाया
न हरियाया मन कभी
हरियाली से लदे पेड़ों......
सुनो........
तुम्हारा आज मेरा अतीत रहा कभी
मत हँसो मेरे अतीत पर तुम
छा्ँव मैंने भिी लुटाए हैं बहुत
सूखी शाखों की दुआ है
हरियाली कायम रहे तेरी
मैं वक्त का उम्रदराज पल हूँ
मेरे वंशज......
तुझमें जिन्दा हूँ ।

2 comments:

  1. अभिभूत हूँ आपका स्नेह पाकर बाबा....

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