Friday 11 July 2014

मन को भरमाना जरुरी होता है

सतरंगा बल्ब जलाया है शाम के साए ने
सफेद दीवार पर छितरा गयी नटखट किरणें
खिड़किी से अंदर आया अँधेरा जमींदोज होने लगा
उफनाई नदी लील गयी आखिरिी सीढी भिी
घाट पर छुूट गया एक सीप
जिसमें बन्द कहानी को मोती नहीं बनना था
आ्ँगन वाली गौरैया भिी बतियाना भुूल गयी
ताल वाली मछली से
पंख पर रखा आसमान उम्मीदों की परवाज लिए
सपनों के बोझ से थकने लगा है
झिलमिल सी रेत को बन्द कर रखा है
शीशे के मर्तबान में
वक्त अलट पलट कर सिद्ध कर रहा हमें
तहखानों में दफ्न सुनहरी मछली काली हो गयी
और मैं लिख रही हूँ सफेद कागज पर सफेद रंग से
इन्द्रधनुषी कविता
मन को भरमाना जरुरी होता है...!!!


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