आज माँ पापा के विवाह की एकतीसवीं वर्षगाँठ है।
जिनसे लेते ही रही हूँ और शायद लेती ही रहूँगी उन्हें कुछ भी देने की हैसियत नहीं मेरी । बस अगर कहीं इश्वर है तो बस एक ही प्रार्थना आपदोनों हमेशा हमदोनों के साथ रहें । ईश्वर अक्सर नहीं सुनता हमारी आवाज लेकिन आपने सुनी और बिना माँगे ही दिया जो हमने सोचा । हमारे ईश आप ही हो ।हमारी हजार गलतियों को माफ किया । हर वक्त में हमारे साथ खड़े रहे । इस दुनिया की कड़ी धूप में आपने साए की तरह ढक लिया हमें । मैं अक्षम हूँ । क्या दे सकती हूँ ?
सारे शब्द आज बौने हैं । कलम असमर्थ है लिखने में ।
बस आपदोनों सदैव स्वस्थ रहें ।एक दूजे के साथ रहें और हमारे सर पर आपकी छाया बनी रहे हमेशा ।
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