Friday 27 June 2014


आज माँ पापा के विवाह की एकतीसवीं वर्षगाँठ है।

जिनसे लेते ही रही हूँ और शायद लेती ही रहूँगी उन्हें कुछ भी देने की हैसियत नहीं मेरी । बस अगर कहीं इश्वर है तो बस एक ही प्रार्थना आपदोनों हमेशा हमदोनों के साथ रहें । ईश्वर अक्सर नहीं सुनता हमारी आवाज लेकिन आपने सुनी और बिना माँगे ही दिया जो हमने सोचा । हमारे ईश आप ही हो । 

हमारी हजार गलतियों को माफ किया । हर वक्त में हमारे साथ खड़े रहे । इस दुनिया की कड़ी धूप में आपने साए की तरह ढक लिया हमें । मैं अक्षम हूँ । क्या दे सकती हूँ ?
सारे शब्द आज बौने हैं । कलम असमर्थ है लिखने में ।
बस आपदोनों सदैव स्वस्थ रहें ।एक दूजे के साथ रहें और हमारे सर पर आपकी छाया बनी रहे हमेशा ।

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