Friday 27 June 2014


बारिशों में बह गयी कागज की नाव...



बारिशों में बह गयी कागज की नाव
लादकर अधूरी ख्वाहिशें।
कहीं डूब जाएगी तो डूबे ।
मुझे अभी अंजुरी में संभालनी हैं
नयी बारिश की नयी बूँदें ।
जिन्दगी मेरे पास पाने को बहुत कुछ है
और मुस्कुराने को बहुत कुछ है
लो आज फिर पाया खुद को
जब भुलाया खुद को..!

लौटते रास्ते भी सुकून देते हैं...!!
बारिश....बरस आज जमकर
कि नाच लूँ आज मैं भी जमकर
मिला लूँ आँख बिजलियों से
घटा के सामने डटूँ मैं तनकर
चलूँ अब भींग लूँ....
भारी बादल दूर गये...
हल्के घन बरस रहे
प्यासे मन सरस रहे...
शुक्रिया जिन्दगी...
शुक्रिया वर्षा...!!!

एक सपना


तुम बात कर रहे थे फोन पर मुझसे । लग रहा था जैसे रंगीन मछलियाँ तैर रहीं हो समंदर में । मैं गुम थी उस आवाज में । जैसे गीली रेत पर लिखता है नाम ऊँगलियों से कोई मीत का । मेरे सपनों का शिकारा लहरों के साथ अठखेलियाँ कर रहा था ।


तुम्हारे दोस्त तुम्हें छेड़ रहे थे और तुम तनकर तुनक कर बता रहे थे कि कोई नहीं था,, अरे वो तो आफिस का फोन था और मैं हँसती जा रही थी । फिर तुम चले गये।ओझल होने तक निहारते रहे मुझे और मैं मुस्कान से फिर मिलने का वादा करती रही । तुम्हारा मुँह फेरना मन को कचोट गया । बेमन अनमने कदमों से लौट पड़ी घर के लिए पर तलाशती रही बनारस के गंगा घाटों पर तुम्हें । मैं सिसक उठी । नींद खुली मेरी अपनी ही हिचकियों से । यह एक सपना था और इसका टूट जाना इसकी नियति .....!!!

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आज माँ पापा के विवाह की एकतीसवीं वर्षगाँठ है।

जिनसे लेते ही रही हूँ और शायद लेती ही रहूँगी उन्हें कुछ भी देने की हैसियत नहीं मेरी । बस अगर कहीं इश्वर है तो बस एक ही प्रार्थना आपदोनों हमेशा हमदोनों के साथ रहें । ईश्वर अक्सर नहीं सुनता हमारी आवाज लेकिन आपने सुनी और बिना माँगे ही दिया जो हमने सोचा । हमारे ईश आप ही हो । 

हमारी हजार गलतियों को माफ किया । हर वक्त में हमारे साथ खड़े रहे । इस दुनिया की कड़ी धूप में आपने साए की तरह ढक लिया हमें । मैं अक्षम हूँ । क्या दे सकती हूँ ?
सारे शब्द आज बौने हैं । कलम असमर्थ है लिखने में ।
बस आपदोनों सदैव स्वस्थ रहें ।एक दूजे के साथ रहें और हमारे सर पर आपकी छाया बनी रहे हमेशा ।